ब्राहृणोऽस्य मुखमासीद् बाहू राजन्य: कृत:।
ऊरू तदस्य यद्वैश्य: पदभ्यां शूद्रोऽजायत ।।
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{ मुंह से
ब्राह्मण , बाहु से राजस्व (क्षत्रिय), ऊरु (जंघा) से
वैश्य और पद (चरण) से शूद्र }
आज न कोई सूद्र है न कोई ब्राह्मण है, सब अपने कर्मो
के आधार है ही अपने पहचान करे .
तिलक लगाने से कोई पंडित नही हो जाता और न
मैला साफ़ करने से शुद्र ...
कीचड़ में ही कमल खिलते है .. अपना कर्म
सुधारो पूजा करने की जरुरत नही पड़ेगी
कर्तव्यमाचनरन् कार्यमकर्तव्यमनाचरन् ।
तिष्ठति प्रकृताचारे स आर्य इति उच्यते ।।
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{किसी भी वर्ण
अथवा जाति का व्यक्ति अपनी श्रेष्ठता अथवा सज्जनता के कारण आर्य है }
किसी बिशेस जाति में जन्म लेने से भी कोई
आर्य नही होता है ..
इसके लिए कठिन त्याग और सुद्धि की जरुरत है
..
अपने आप को सतकर्मो की और ले जाने की जरुरत
है
एक मुसलमान न तो किसी मस्जिद में गिरता है और
न कोई हिन्दू मंदिर में गिरता है
सब लोग पैदा होते है प्रक्रति के द्वारा बनाए
हुए रास्ते से ही . फिर यहाँ आकर सिया और सुन्नी और हिन्दू , ब्राहमण .वैश्य
, सूद्र और क्षत्रिय बन जाते है ||
चाहे कर्म कैसा भी हो वेद पुराण का एक खंड
अध्याय भी न पता हो लेकिन ब्राहमण कहलवाने
में ख़ुशी मिल रही है लेकिन जरा वे अपनी आत्मा
से पूछे ..
अगर उनकी आत्मा उनको सच्चा ब्राहमण बताती है
तो वे इस योग्य है नही तो कदापि नही हो सकते
..
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- पुराने ज़माने में कुछ मतलबी लोगो ने
" वर्नेति वरना को जन्मेती वरना "
( व्यवसाय के हिसाब से वर्ण (जाति) ,को जन्म के हिसाब से वर्ण (जाति )
कर दिया |
जिनके साथ ये अन्याय किया गया वो तो बेचारे पढ़े लिखे नही थे
बल से कमजोर थे पर हम लोग आज पढ़े लिखे होकर भी , बलशाली होकर भी
इस व्यवस्था को क्यों अपनाये हुए है ..|
जरूरत है बदलने की जरूरत है इस बेकार की और बाटने वाली और समाज में उच्च नीच के भेदभाव को मिटाने की और स्वार्थी लोगो द्वारा बनाये हुए बन्धनों को तोड़ने की ..|
हमें इस व्यस्था को बदलना होगा और एक सच्चे समाज की स्थापना करना होगा ..||
उसी ऋग्वेद के विचार को लगाना होगा कुछ लालची और दुराचारी लोगो द्वारा लिखे गये ग्रंथो को भी अस्वीकार करना होगा ...|
जो हमारे काम का नही या हमारे अधिकारों के विरुद्ध है उसका विरोध करना होगा ..||
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